“माँ का आखिरी उपहार”

 

                            “माँ का आखिरी उपहार”


रवि एक गरीब परिवार का लड़का था, जो अपनी माँ के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था। उसके पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था, और उसकी माँ, सुमित्रा देवी, घर-घर जाकर काम करके उसे पढ़ा रही थी। रवि पढ़ाई में बहुत होशियार था और उसकी माँ का सपना था कि वह एक बड़ा आदमी बने। लेकिन गरीबी ने उसकी राह आसान नहीं की। कई बार पैसे होने के कारण उसे स्कूल छोड़ने की नौबत जाती, पर माँ दिन-रात मेहनत करके किसी तरह उसकी पढ़ाई जारी रखती। एक दिन रवि को एक बड़े कॉलेज में पढ़ने का मौका मिला, लेकिन दाखिले के लिए काफी पैसे चाहिए थे। माँ ने बिना कुछ सोचे अपनी एकमात्र सोने की चूड़ियाँ बेच दीं, जो उसकी शादी के समय की थीं। रवि को यह बात पता नहीं चली। वह शहर चला गया और मेहनत करके एक बड़ा इंजीनियर बन गया। उसकी नौकरी लग गई और वह धीरे-धीरे अपनी नई जिंदगी में व्यस्त हो गया। माँ की चिट्ठियां आतीं, लेकिन व्यस्तता के कारण वह कभी-कभी ही जवाब दे पाता। एक दिन खबर आई कि उसकी माँ बहुत बीमार है। जब तक रवि गाँव पहुँचा, माँ इस दुनिया से जा चुकी थी। घर में उसे एक पुराना संदूक मिला, जिसमें माँ की एक चिट्ठी रखी थी: "बेटा, तू बहुत बड़ा आदमी बन गया, यही मेरा सपना था। तेरी पढ़ाई के लिए मैंने अपनी चूड़ियाँ बेच दीं, लेकिन इसका दुख कभी नहीं हुआ, क्योंकि तेरा भविष्य इससे उज्ज्वल हुआ। बस एक आखिरी ख्वाहिश हैकभी खुद को अकेला मत समझना, क्योंकि मेरी दुआएँ हमेशा तेरे साथ हैं।" रवि के हाथ से चिट्ठी गिर गई, और आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उसे एहसास हुआ कि उसने अपनी माँ के लिए कभी समय नहीं निकाला, और अब बहुत देर हो चुकी थी। कभी-कभी हम अपनों के प्यार और त्याग को तब समझते हैं जब वे हमारे पास नहीं होते। इसीलिए, अपने माता-पिता के साथ समय बिताइए और उनके त्याग की कद्र कीजिए।

 

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